सुना आपने...
हम जंग जीत गए...आतंक पर हम बड़ी जंग जीत गए...
नरीमन हाउस को आतंकवादियों से खाली करवा लिया गया है॥यह घोषणा सुनते ही वहां मौजूद लोगों ने जय-जयकार शुरू कर दी। मुझे यकीन है टीवी के आगे बंधे बैठे पूरे मुल्क के बहुत सारे लोग उस जय-जयकार में शामिल थे। मैं नहीं था। चाहते हुए भी नहीं...बल्कि मुझे तो शर्म आ रही थी। मरीन हाउस के 'गौरवपूर्ण' दृश्यों को दिखाते टीवी एंकर बोल रहे थे – यह गर्व की बात है, हमारे बहादुर जवानों ने आतंक पर एक जंग जीत ली है, नरीमन हाउस पर कब्जा हो गया है। नीचे न्यूज फ्लैश चल रहा था – नरीमन हाउस में आतंकियों का सफाया...दो आतंकी मारे गए...पांच बंधकों के भी शव मिले...एक एनएसजी कमांडो शहीद।
किस बात पर गर्व करें? पांच मासूम जानें और एक बेशकीमती सैनिक खो देने के बाद दो आतंकवादियों के सफाए पर? 10-20-50 लोग मनचाहे हथियार और गोलाबारूद लेकर आपके देश में घुसते हैं। जहां चाहे बम फोड़ देते हैं। खुलेआम सड़कों पर फायरिंग करते हैं। आपकी बेहद आलीशान और सुरक्षित इमारतों पर कब्जा कर लेते हैं। आपकी पुलिस के सबसे बड़े ओहदों पर बैठे अफसरों को मार गिराते हैं। सैकड़ों लोगों को कत्ल कर देते हैं। आपके मेहमानों को बंधक बना लेते हैं। आपकी खेल प्रतियोगिताओं को बंद करवा देते हैं। आपके प्रधानमंत्री और बड़े-बड़े नेताओं की घिग्घी बांध देते हैं। तीन दिन तक आपके सबसे कुशल सैकड़ों सैनिकों के साथ चूहे-बिल्ली का खेल खेलते हैं और 'अपनी मर्जी से' मारे जाते हैं...इसे आप जीत कहेंगे? क्या यह गर्व करने लायक बात है?
आपको क्या लगता है, देश पर सबसे बड़ा आतंकी हमला करनेवाले आतंकवादियों को मारकर आतंक के खिलाफ यह जंग हमने जीत ली है? देशभक्ति अपनी जगह है, लेकिन सच यह है कि हम इस जंग में बुरी तरह हार गए हैं। उन लोगों ने जो चाहा किया, जिसे चाहा मारा, जिस हद तक खींच सके खींचा। आपको क्या लगता है, बंधकों को सेना ने बचाया है? जब वे होटलों में घुसे तो हजारों लोग उनके निशाने पर थे। वे चाहते तो सबको मार सकते थे। उनके पास इतना गोला-बारूद था कि ताज और ओबरॉय होटेलों का नाम-ओ-निशान तक नहीं बचता। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने इंतजार किया कि पूरी दुनिया का मीडिया उनके आगे घुटने टेक कर और जमीन पर लेटकर यह दिखाने को मजबूर हो जाए कि वे क्या कर सकते हैं। उनकी चलाई एक-एक गोली पर रिपोर्टर्स चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे थे – देखिए एक गोली और चली। इसे आप जीत कहेंगे?
यह देश पर सबसे बड़ा आतंकी हमला था...1993 के बम ब्लास्ट के बाद भी यही कहा गया था। जब वे हमारा जहाज कंधार उड़ा ले गए थे, तब भी यही कहा था। संसद पर हमला हुआ तब भी यह शब्द थे। अहमदाबाद को उड़ाया था, तब भी सब यही सोच रहे थे। दिल्ली, जयपुर, मुंबई लोकल...हर बार उनका हमला बड़ा होता गया...क्या लगता है अब इससे बड़ा हमला नहीं हो सकता? बड़े आराम से होगा और हम तब भी यही कह रहे होंगे।
क्या इसका इलाज अफजल की फांसी में है? क्या इसका इलाज पाकिस्तान पर हमले में है? क्या इसका इलाज पोटा में है? आतंकियों ने अपने ई-मेल में लिखा था कि वे महाराष्ट्र एटीएस के मुसलमानों पर जुल्म का बदला ले रहे हैं। वे गुजरात का बदला ले रहे हैं। वे आजमगढ़ का बदला ले रहे हैं। वे धर्म के नाम पर लड़ रहे हैं। भले ही उनकी गोलियों से मुसलमान भी मरे, लेकिन वे मुसलमानों के नाम पर लड़ रहे हैं। यूपी के किसी छोटे से शहर के कॉलेज में पढ़ने वाला अंसारी जब देखेगा कि आजमगढ़ से हुई किसी भी गिरफ्तारी को सही ठहरा देने वाले लोग कर्नल पुरोहित और दयानंद पांडे से चल रही पूछताछ पर ही सवाल उठा देते हैं, तो क्या वह धर्म के नाम पर हो रही इस लड़ाई से प्रभावित नहीं होगा? क्या गुजरात को गोधरा की 'प्रतिक्रिया' बताने वाले लोग मुंबई को गुजरात की प्रतिक्रिया मानने से इनकार कर पाएंगे?
जब वे लोग इस तरह के कत्ल-ए-आम पर उतर आए हैं तो क्या गलत है हिंदू प्रतिक्रिया भी। इसके जवाब में फिर मुस्लिम प्रतिक्रिया होगी। फिर हिंदू...फिर...
(नवभारतटाइम्स.कॉम से साभार)
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7 comments:
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इसके अलावा कुछ नहीं। पैसा कमाना है इनका मकसद। अगर इनको आपको बेवकूफ बनाकर पैसा मिलता है तो आपको बेवकूफ भी बनाएंगे। हज़ारों मीडिया कर्मी इसी मजबूरी के चलते कई समाचार चैनलों में कार्यरत हैं।
wo hame ghar me ghuskar marte hain or ham jeet ki sekhi bagharate hain. narayan narayan
इस हमले से हमें बहुत कुछ सीखना है ,पहला आतंवाद को स्वीकार करना ओर उसके लिए कमर कसना ,मोर्चे पर हमें पता होता है दुश्मन कहाँ है ....ओर कौन है तब उससे लड़ना थोड़ा आसान होता है पर अनजाने दुश्मन से लड़ना बेहद मुश्किल ...हमारी कुछ खामिया है जो हमें स्वीकारनी होगी .सुरक्षा के लिहाज़ से ओर राजनैतिक इच्छा शक्ति की कमी से ...पिछले दिनों आंतकवाद को पॉलिटिकल पार्टी ने एक धर्म विशेष के विरुद्ध लडाई बना दिया यहाँ तक की मीडिया ओर ब्लॉग में लोगो ने इसे एक धर्म विशेष के विरुद्ध बताया ....इससे पुलिस ओर दूसरी एजेंसी का मनोबल गिरता है.....आतंक का कोई धर्म नही होता इसे हम सबको स्वीकारना होगा ...ओर एक जुट होकर इसके ख़िलाफ़ लडाई लड़नी होगी ....अब समय अपनी पुराणी खामियों को गिनने का नही संबक सीखने का है.....देश के आम नागरिक को भी समझना होगा की पुलिस बल ओर सरकार हरजगह नही रह सकती उसे भी सुरक्षा में भागी दारी निभानी होगी .
क्रोध ,हताशा ओर एक अजीब सी बैचैनी है पूरे देश में है जैसा आप महसूस कर राहे है ,पूरा देश कर रहा है ...बस इस बैचनी को जिन्दा रखना होगा सरकार पर दबाव बनाये रखना होगा ओर जवाबदेह भी.
हमेशा की तरह तुमने अपनी बात को जोरदार तरीके से पेश किया है. तुम्हारी बातों का समर्थन प्रभाष जोशी और मृणाल पांडे भी कर रहे हैं. आज के भाष्कर का पेज2 बॉटम देखो. वाकई इसकी कवरेज रियालटी शो हो गई थी फिर भी हमलोग टीवी से चिपके थे. मैंने खुद देर रात तक कवरेज देखा इसलिए समझ नहीं आता क्या कहूं. कई बार भावनाएं तर्क पर हावी हो जाती हैं और हम भी उसी भेड़चाल में बहे चले जाते हैं. लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि कई चैनलों की भूमिका बेहद गैर जिम्मेदाराना रही है. ईश्वर बचाए इनसे...
... अत्यंत प्रभावशाली लेख है, मीडिया तमाशाई हो गई है उसे सिर्फ ज्वलंत घटनाओं का तमाशा बनाकर दिखाना है सम्वेदनशीलता से उन्हे कोई लेना-देना नही है!
bhut likhte hain hum log , bhut cheekhte hain ki galat ho rha hai , anayay hai falana dhimka ye wo.... par hain to vahi dhak k teen pat. lagta hai ab kalam se nhi banduk se likho bus
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