Friday 7 November, 2008

जिए तू इस तरह...जिंदगी को तरसे

सुना आपने...

दिल्ली में एक और प्रेमी ने अपनी प्रेमिका पर तेज़ाब फेंक दिया...भई वाह...इसे कहते हैं तरक्की। मोहब्बत में भी हम तरक्की की राह पर हैं। एक पुराना गीत सुनकर मुझे अक्सर बड़ी हैरत होती थी। अब नहीं होती। धर्मेन्द्र एक पार्टी में जब इस गीत को गाते हैं तो सामने खड़ी आशा पारेख की आंखें भर आती हैं और वह पार्टी क्या घर ही छोड़कर चली जाती हैं। इस गीत को सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे...मुझे गम देने वाले तू खुशी को तरसे... कोई कैसे अपनी प्रेमिका को ऐसी बद्दुआ दे सकता है...और उस गीत में धर्मेन्द्र के एक्सप्रेशंस...उफ्फ!!! उनके चेहरे पर उस वक्त कुत्ते मैं तेरा खून पी जाऊंगा वाले भाव कुछ-कुछ आने लगे थे। जिस नफरत से वह आशा पारेख को देखते हैं, उन्होंने शायर के भावों को एकदम सही शक्ल दी है...लेकिन इतनी नफरत !!! उस शख्स के लिए जिसे आप प्यार करते हैं !!! ये तेज़ाबी प्रेमी उस गीत के ही भाव लगते हैं...भाड़ में जाए त्याग, बलिदान...मैंने प्यार किया है तो हासिल भी मेरा है। और मेरा नहीं तो किसी का नहीं...जाने वो कैसे लोग थे जो याद में जिंदगी गुज़ार देने को तैयार रहते थे...मूर्ख थे। या उन्हें मोहब्बत में तेज़ाब का इस्तेमाल ही पता नहीं होगा...अब प्रेमी जान गए हैं। देखिए...इस तेज़ाबी प्यार में तड़प कम नहीं है। जज़्बात अधूरे नहीं है। हर हद से गुज़रने का वही हौसला है, बस दिशा अलग है। ये लोग कम से कम उन जैसे नहीं हैं जो तू नहीं और सही और नहीं और सही को प्यार मानते हैं...तेज़ाबी आशिक जलते तो हैं...उनके लिए इश्क कोई कबूतर नहीं जो रोज़ डाल बदल लेता है...लेकिन जलने वाले जलाने लगे हैं...अपने ही इश्क को...तो क्या तू नहीं और सही ही सही...पता नहीं...भला हो।

1 comment:

Anonymous said...

mohabbat hr kisi k bs ki bat nahi.....aksar log is lfz ka mtlb jan hi nahi pate....although ise hr aspect se dikhaya gya hai..filmo mein kahanion mein jahan tahan...there is a lot of glamour and tenderness attatched to the word...glamour se chkachond log ismein parh to jate hain lekin uski tenderness ko brkarar rakhna..ajkl k zamane ki daurdoop aur tension bhri pecheeda zindagi k chalte asan nahi...aur jhallaye hue ye so called frustrated ashiq us tezabi ashiq ka roop dhr lete hain..jinka zikr yahan chla hai..aur mere hisab se unhe ashiq kehna ashiqui ki tuheen hai.. kehna to bahut hai...filhal itna hi...sirf ehsaas hai ye rooh se mehsoos kro....