सुना आपने
टीवी पर सीरियलों के नए एपिसोड नहीं आ रहे हैं। दो दिन में तीन ऐसे लोगों से मुलाकात हुई जो इस बात से परेशान थे कि सीरीयलों के पुराने एपिसोड दिखाए जा रहे हैं।
आज दो घटनाएं घटीं...
एक
दुकान पर कुछ सामान खरीदने के लिए खड़ा था। मुझसे पहले एक महिला खरीददारी कर रही थी। मैं पीछे था।चेहरा नहीं देख पा रहा था। अपने सामान की बारी का इंतजार करती नजर ज़बर्दस्ती उसके सामान पर चली गई। हेल्दी फूड था। न्यूट्रालाइट बटर। शूगर फ्री। वीट फ्लेक्स। जूस। अब महिला को रस्क चाहिए थे। दुकानदार हेल्दी ब्रैंडेड रस्क ले आया। महिला ने कहा, कोई और भी है? दुकानदार ने एक- दो और अच्छे ब्रैंडेड पैकिट्स दिखा दिए। कुछ देर उलट-पलट के बाद महिला ने कहा अरे कुछ सस्ते वाला दे दो, कैसा भी...हमें कौन सा खुद खाना है, काम वाली बाई के लिए चाहिए...
महिला का चेहरा देखने का मन नहीं हुआ।
दो
रात को खाना खाने के बाद टहलने निकले। हल्की-हल्की ठंड हो गई है। पत्नी को कहा स्वेटर पहन लो। खुद भी एलन सोली की स्वेट शर्ट पहन ली। नौ बज रहे थे। इस वक्त लोग टहलते ही नजर आते हैं। किसी ने पीछे से आवाज लगाई दीदी बॉल ले लो। मुड़कर देखा, छोटा सा बच्चा था। छोटी सी साइकल थी। उस पर खिलौने लटक रहे थे। रंग-बिरंगे। प्लास्टिक की बड़ी-बड़ी बॉल्स थीं। गुब्बारे थे। बंदूके थीं। छोटी-छोटी कारें थीं। इस वक्त ये बच्चा कहां घूम रहा है...सांवला सा...बहुत ही प्यारे नैन-नक्श। सलीके से बनाए हुए बाल। एक ही रंग की पैंट शर्ट, जैसी सफारी सूट की होती है। कद भी छोटा सा। पापा कहां हैं, मैंने पूछा। नहीं हैं। उसकी जबान में कॉन्फिडंस था, बेचारगी नहीं। अच्छा लगा। उससे बात करने का मनने हुआ।
मां कहां है? घर पर है, जल गई है। जल गई है? हां, स्टोव फट गया था। और कौन है? छोटा भाई है। तुम कितने साल के हो? नौ साल का। स्कूल जाते हो? हां, दिन में। और शाम को गुब्बारे बेचते हो? हां। स्कूल का खर्चा कहां से आता है? वो अमरीश गौतम का बेटा है ना...जिसके लिए हम हाथ पर वोट देते हैं...वही देता है...मां की दवाई का खर्च भी। एक गेंद ले लो। कितने की है? बीस रुपये की। अच्छा दे दो। ये लो बीस रुपये। दस रुपये और ले लो। नहीं। क्यों? मां मना करती है।
छोटी सी साइकल लेकर छोटा सा बच्चा आगे बढ़ गया। मेरे हाथ में बड़ा सा दस का नोट झूल रहा था।
सुना आपने, टीवी पर सीरियल्स के नए एपिसोड नहीं आ रहे हैं। मैं सीरियल्स नहीं देखता। कोई बता सकता है इनमें क्या दिखाते है?
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12 comments:
जो दिखाते हैं उसके असर से ऐसे बच्चों और माँओं की नस्ल कुछ दिनों में ही गायब हो जायेगी. तब हम पूरी तरह सभ्य हो जायेंगे.
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jhan tak baat hai orat k bred khareedne vali ghatna ki to hum sab aise hi hain, usne kuch alag nhi kiya.
मुद्दा यह नहीं कि सभी ऐसा करते हैं या नहीं करते। लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि आप ऐसे तमाम किस्सों के नजरअंदाज करने वाली नजर नहीं रखते। ईश्वर करे समाज के प्रति आपकी संवेदनशीलता यूं ही बरकरार रहे....आमीन।
यथार्थ के बहुत करीब है आप का लेखन
सोचने को मजबूर करता है
Shubhkamnayon sahit swagat hai..! Ham aake padhte rahenge...fursatke lamhonme tippanee zaroor doongee...wo aapka adhikar hai...is waqt takleefme hun...zyada padha nahee gaya..
Mere blogpe aneka shehil nimantranbhi !
Tarushree jee ki tippani se sahmat hoon. TV serials nahin dekhte isiliye samvedanshilta sesh hai aapmein. Swagat mere blog par bhi.
bahut jandar shandar. narayan narayan
apki kosis achi hai.practical b hai. thoda media se bahar jo kuch ho raha hai us per nazar rakhe.blogging ki duniya main aap jaise logo ki jarurat hai.
अपने अनुभवों को बड़े करीने से उतारा है आपने अपने ब्लाग पर। धन्यवाद,
आपने बहुत अच्छा लिखा है ।
भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
लिखते रहिए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
कविता,गज़ल और शेर के लिए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
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स्वच्छ भारत सुन्दर भारत
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