सुना आपने
फरीदाबाद में दो लड़कों ने अपनी मकान मालकिन को नशीली कोल्ड ड्रिंक पिलाकर बेहोश किया और फिर...फिर आप सब जानते हैं...आप सब समझते हैं। लेकिन यह खबर आपने नहीं सुनी होगी। कहां सुनेंगे ऐसी खबर! न वह मकान मालकिन कोई मॉडल थी...न कोई बड़ी हस्ती...उसका कोई रिश्तेदार भी बड़ा आदमी नहीं था...दोनों किराएदार ही किसी बड़े आदमी के रिश्तेदार होते तो...(किराएदार खुद तो बड़ा आदमी क्या होगा!)...फिर क्यों सुनी जाएगी यह खबर...पर खबर सुपर हिट थी...एक वेबसाइट पर हजारों लोग इसे पढ़ गए...
यानी जिसे खबर मिल गई उसने पढ़ मारी...क्यों...फर्क क्या पड़ता है...रेप की 8-10 खबरें रोज आती हैं...नाबालिग का रेप...दलित का रेप...पड़ोसी ने रेप किया...सिपाही ने रेप किया...रिश्तेदार ने रेप किया...बाप ने रेप किया...हम पढ़ते हैं...सब पढ़ते हैं...फर्क क्या पड़ता है...हर खबर तो पहले पन्ने पर नहीं आती...हर केस जेसिका नहीं हो जाता...हर विक्टिम प्रियदर्शिनी मट्टू नहीं हो जाती...इन 'छोटी-मोटी' विक्टिम्स के लिए कौन झगड़ता फिरेगा...जितनी तेजी से लड़कियां नहीं बढ़ रहीं, उतनी तेजी से ये 'छोटी-मोटी' विक्टिम बढ़ रही हैं...फिर भी खबरें छपती हैं...रोज़ छपती हैं...क्यों? सिनेमा की लोकप्रियता के बारे में कहीं पढ़ा था...लोग पर्दे पर वो देखते जो खुद नहीं कर पाते...इसलिए उन्हें अच्छा लगता है...खुशी मिलती है...फ्रस्ट्रेशन निकलती है...फिल्म हिट हो जाती है...रेप की खबरें भी तो कहीं...
उस दिन सुबह-सुबह ऑफिस पहुंचा ही था कि वाइफ का फोन आ गया...रोज आता है...अ वेन्ज्दे में नसीरुद्दीन ने बड़ा सही कहा था - वाइफ फोन करती है, पूछती है खाना खाया, चाय पी...असल में वह जानना चाहती है कि आप जिंदा हों या नहीं...मेरी वाइफ भी यही सब पूछती है...लेकिन उस दिन उसने नहीं पूछा...हलो, अपनी कॉलनी में रेप हो गया...क्या????? हां, कल रात...सड़क के किनारे खड़ी थी लड़की...किसी ने साइड में धकेल दिया और...कौन थी? पॉकेट ए में रहती है...लेकिन खबर तो कहीं नहीं है...अरे कौन चाहेगा कि उसकी बेटी की खबर छपे...उससे क्या होगा...बात सही थी...कौन चाहेगा...? लेकिन खबरें छपती हैं...हम पढ़ते हैं...सब पढते हैं...क्यों पढ़ते हैं...? मेरी कॉलनी में रेप...मेरे घर के पास रेप...तो सेफ कौन है...? कहीं...कभी...नहीं नहीं...यह मेरे लिए रेप की सबसे भयानक खबर थी...क्या आपने भी सुनी है कभी रेप की भयानक खबर??
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3 comments:
सही है विवेक किसी को कोई फर्क नही पड़ता इन ख़बरों से सिवाय पीड़ित के | इसीलिए कहा गया है पीर परायी कोन जाने |
मै भी फरीदाबाद में ही रहता हूँ लेकिन मुझे इस ख़बर का पता आपके ब्लॉग से ही लगा |
एक बात और कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटाले ताकि टिप्पणीकारों को टिप्पणी करने में सुविधा रहे |
बहुत ही उम्दा एवम् ज्वलंत प्रश्नो को उठाता हुआ लेख है , काश की इसकी बानगी से कुछ फ़र्क भी पड़े
ajeeb itefaq hai....aj subah jb uthi to mn kuch bojhal tha,,,yun hi shawl orhe drive k liye chli gyi....aur akaran bilkul yahi vichar dimag mein ghum rahe the..subah paper uthate hi pehle panne pe rape ki khabr....kitne salon se parhte aa rahe hain..kyon parhte hain ? jis khbr mein puri detail na di ho usse kuch disappointment bhi hoti hai ? kis halat mein hui kya hua hoga...lekin iske bad kya ? pir prayi jan bhi len to kya kr lenge ? asal mein aurat hr hal mein ek tamasha hi bn jati hai..victim ho k bhi kya uski vyatha pathkon ki ek bhookh ko nahi mita rahi ? mn mein aya tha k newspapers ko ye khbren dena hi bnd kr dena chahiye..lekin aurat ki izzat ka janaza nikale bina inki bhi kya market hai!
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