Saturday, 8 August 2009
एक महान लेखक की बे-मौत...
कोर्ट मार्शल का नाम सुना है आपने? मशहूर नाटक कोर्ट मार्शल? क्या आप जानते हैं कि इस महान और मशहूर नाटक को लिखने वाला करीब तीन साल से लापता है? 2 जून 2006 की सुबह दीपक मॉर्निन्ग वॉक के लिए निकले। फिर नहीं लौटे। आज तक।
अभी अंबाला में उनके कुछ दोस्तों से मिलना हुआ। वे दीपक की बात करते कतराते हैं। दुखता है। दीपक की पत्नी गीता दीपक की यादों के साथ-साथ कैंसर से भी जूझ रही हैं। अब वे उन लोगों से कम ही मिलती हैं, जो दीपक की बात करने आते हैं। कुछ लोग उनके नाटक करते हैं, वे अब इजाजत नहीं लेते। स्टेज पर नाटक होते हैं...दीपक नहीं।
उनकी याद में सभाएं नहीं होतीं... उन्हें श्रद्धांजलि कोई दे तो कैसे...
दीपक हैं या नहीं, कोई नहीं जानता। इंतजार...कुछ करते हैं, कुछ नहीं। दीपक का जिक्र अब सिर्फ एक लाइन में होता है। लोग एक-दूसरे से पूछते हैं - क्या लगता है, कभी लौटेगा दीपक...जवाब नहीं मिलता...दे भी कौन सकता है। जिक्र रुक जाता है। बात आगे नहीं बढ़ती।
अजीब है ना...एक महान लेखक के लिए इससे बड़ी ट्रैजिडी और क्या होगी कि उसका जिक्र ही बंद हो जाए। फिर भी, दीपक के शब्द तो जलते हैं... जलते रहेंगे।
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11 comments:
यह निर्मम त्रासदी दिल को दुखाती तो है..
पर इस प्रकरण के विवेचना अधिकारी क्या कहते हैं, यह भी लिखना था ।
कोई टुटपुँजिया नेता विधायक होता , तो सी०बी०आई जाँच कब की शुरु हो चुकी होती !
यह बतायें कि अपना भारत देश बौद्धिकों के लिये है, भी ?
oh !यह तो सचमुच जादती है -कैसे कैसे दुःख हैं इस दुनिया में !
सचमुच बहुत दुख की बात है .. इस बात की कहीं कोई चर्चा भी नहीं !!
दीपक का गायब होना
एक दिन सूरज को
भी
ले डूबेगा
गुमशुदगी के जल में।
उफ़...
वाकई यह सूचना नहीं थी हमारे पास...
बल्कि मैं यह कहूं तो ज्यादा सच होगा कि व्यक्तिगत तौर पर मुझे स्वदेश दीपक के बारे में ज्यादा जानकारी ही नहीं थी, मुझे तो ऐसा लगता था कि ये महानुभाव गुजरे जमाने की चीज़ हैं।
हमने इनके नाटक किये हैं।
कोर्ट मार्शल तो अभी पिछले साल ही किया था, जोधपुर, कोटा में...
the hunter of the soul...
उनका लिखा बाकी है...
शुक्रिया...
ऐसे सिरफिरे लोगों की यही नियति होनी है...
नींव की ईंटे...
भावी कंगूरों तक यह बात पहुंचाने का दायित्व है, हमारे पास...
नया ज्ञानोदय में करीब एक बरस पहले ज्ञान चतुर्वेदी ने बेबाकी ओर तहे दिल से स्वदेश दीपक को याद किया था ओर तब तमाम लोगो ने मीडिया से भी गुहार लगायी थी....अवसाद के दौर से गुजरते हुए उसी की परिणिति के तौर पे वे आर्थिक संकट से गुजरने लगे थे .सुसाइडल टेंडसी भी यदा कदा सर उठाने लगी थी ...पर हाँ शासन की बेरुखी स्वाभाविक थी..उम्मीदे कही ओर से थी.....
मुझे स्वदेश दीपक के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। उनका लापता होना तो दुखद है ही, गैर सरकारी या सरकारी स्तर पर उन्हें ढूंढने के प्रयास न होना
और भी दुखद है। क्या हम कृतियों पर मुग्ध हो वाहवाही ही करते रहेंगे? कभी कृतिकर्ता की गति के बारे में जानने की कोशिश और जान कर उसे सुधारने की
कोशिश नहीं करेंगे क्या?
क्या यह मानव व्यवहार का सड़ा हुआ पहलू है कि अक्सर मानसिक रूप से कमजोर पड़ गए व्यक्ति विशेष को हम किनारे कर देना ही सही (दुनियादारी)समझते हैं..पता नहीं..पर अक्सर ऐसा ही होते देखा और सुना है मैंने।
समझ मे नही आता क्या कहूँ ..ऐसाही एक किस्सा मेरे अपने सामने घटा ..घट रहा है ...चाहती हूँ ,लोगों के सामने रखूँ ,लेकिन उसमे अन्य कुछ लोगों को आपत्ती भी हो सकती है ..खामोश हूँ ..
आपका लेखन बेहद परिपक्व और संजीदा है..
http://shamasansmaran.blogspot.com
http://kavitasbyshama.blogspot.com
http://lalitlekh.blogspot.com
http://aajtakyahantak.blogspot.com
http://shama-baagwaanee.blogspot.com
http://shama-kahanee.blogspot.com
इस खबर को तो हमारे मुख्यधारा के मीडिया ने भी तवज्जो नहीं दी। अगर किसी नेता का कुत्ता भी गुम हुआ होता तो बवाल मच गया होता। मगर कलाकारों की कोई पूछ नहीं होती इस देश में।
आम आदमी, बुद्धिजीवी, कलाकार, फनकार....इनकी जरूरत ही किसे है? अगर दीपक धन्नासेठ होते, किसी नेता के पिछलग्गू भी होते, स्टेज की जगह सिनेमा से जुड़े होते तो अबतक अख़बारों, टी वी चैनलों, यहाँ तक कि संसद के दोनों सदनों में भी हंगामे की कैफियत होती.
log sirf falon ke tarrif karte he vrichon ko bhul jate he thek ise tarah aj log unke natak karte he taaliya batorte he or khus hote he lekin uske janamdata ko bhul jate he, ye bde dukh ki bat he ki hum puri duniya se jud rhe he lekin apni zameen se dur hote ja rhe he .........
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