Tuesday 9 December, 2008

मैं जनता से सख्त नाराज हूं...

सुना आपने

कांग्रेस जीती...बीजेपी जीती...बीएसपी भी जीत गई...छोटे-मोटे निर्दलीय भी कुछ न कुछ जीत गए॥और जनता यानी कि हम...उनके पीछे ढोल नगाड़े लेकर दौड़ पड़े...फलाना जी जिंदाबाद...फलानी जी अमर रहें...कोई अंडरडॉग बन गया...कोई हैट्रिक वाला नॉट आउट...और जनता यानी कि हम ताली पीट-पीटकर उनके साथ जश्न मनाने लगे...वही जनता यानी कि हम जो सिर्फ दो दिन पहले तक मुंबई हमले के नाम पर नेताओं को, राजनीति को गालियां बक रहे थे...सब कुछ बदल देने की बात कर रहे थे...देश का बेड़ा गर्क कर देने के लिए इन नेताओं को कोस रहे थे...अब इन्हीं नेताओं के ऊपर फूल फेंक रहे हैं...जय-जयकार कर रहे हैं...

देखा मैंने...अपने ऑफिस की खिड़की से...हजारों को जुलूस था...नेता कौन था मैं नहीं पहचान पाया...लेकिन जनता को मैंने पहचाना...ये वही लोग थे...जो कनॉट प्लेस में मारे गए थे....ये वही लोग थे...जिन्हें जयपुर में मंदिरों और बाजारों में खून से लथपथ पड़े देखा था...ये वही लोग थे...जो अहमदाबाद में सहमे से पुलिसवालों को दसियों बमों निष्क्रिय करते देख रहे थे...ये वही लोग थे...जिन्हें मुंबई के स्टेशन पर दो-तीन सिरफिरे लड़कों ने क्लाशनिकोव से भून दिया था...ये वही लोग थे...जो मेजर संदीप या करकरे के जनाजे में आंसू पोंछते नजर आए थे...और ये वही लोग थे.... जो गुस्से में भरे मुबई की सड़कों पर हजारों की तादाद में उतर आए थे॥सिलेब्रिटीज के पीछे-पीछे...हाथों में बैनर, तख्तियां और मोमबत्तियां लिए...

और देश को लगने लगा था कि जनता सच में कुछ बदल सकती है...नेता डरने लगे थे...उनके मुंह से उलटे-सीधे बयान निकलने लगे थे...खूब मेसिज आए...अब जागो...मेल्स आए...कुछ कर दिखाओ...मुंबई के आतंकवादी हमले का ही असर था कि बहुत दिनों के बाद पहली बार किसी गंभीर मुद्दे पर (वरना तो यह एकता गांगुली के टीम से निकाले जाने पर या फिर साइमंड्स के खिलाफ ही दिखती है) पूरा देश एक दिखा...क्या हिंदू क्या मुसलमान....यहूदी भी...एक ही सुर में बोल रहे थे...जब ये सब हो रहा था...तब मैं यही सोच रहा था कि ये जो गुस्सा है...कहां निकलेगा...ये जो उबाल है....कैसे उफनेगा...कुछ असर दिखा भी...पाटिल द्वय गए...देशमुख गए...एनएसए की भी नौकरी पर बन आई...लेकिन गुस्सा शांत नहीं हुआ था...

दोस्त कहते हैं मैं नेगटिव सोचता हूं...नीचे वाली दो पोस्ट पढ़कर सबने कहा कि मैं इस मुश्किल की घड़ी में मैं ओवर-क्रिटिकल हो रहा हूं...लेकिन जनता का गुस्सा देखकर मुझे भी लगने लगा था कि इस बार तो कुछ हो ही जाएगा...ये उबाल निकल ही जाएगा...लेकिन कहां...सरकार को भी नहीं सूझ रहा था शायद...तभी तो राइस मैडम आईं...उन्होंने समझाया या सरकार खुद समझी...पता नहीं...उबलते दूध में मारने के लिए फूंक मिल गई...अपना पाकिस्तान कब काम आएगा...बीस आतंकवादी लौटाओ...उस शख्स को इनाम मिलना चाहिए जिसने सालों पहले यह लिस्ट बनाई थी...लिस्ट निकली...पाकिस्तान के पास पहुंची...सारा गुस्सा पाकिस्तान पर शिफ्ट हो गया...

पाकिस्तान मुर्दाबाद...हमला करो...अमेरिका से कुछ सीखो...आतंकवादी ट्रेनिंग कैंपों को उड़ा दो...पाकिस्तान को सबक सिखा दो...अमेरिका ने भी मदद की...पाकिस्तान को कहा, देखो...इस गुस्से को निकालने में भारत की मदद करो...वह भी तो तुम्हारी मदद करता है...जब तुम्हारे यहां गुस्सा होता है...पाकिस्तान ने कार्रवाई शुरू कर दी...क्या बात है...फुस्ससससस...गुस्सा निकल गया...अब तो गेंद पाकिस्तान के पाले में है...होती रहेगी कार्रवाई...चलो हम जश्न मनाएं...जीत गया भई जीत गया...हमारा नेता जीत गया...

7 comments:

Udan Tashtari said...

जय हो..जीत गये...

सही आलेख!!!

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

और क्या चाह्ते हो भाई - एक मुख्यमंत्री और दो गृहमंत्री तो फूंक दिए!

कुश said...

सही कह रहे हो भाई

सुनीता शानू said...

साची कही...

Anonymous said...

विवेक, लेकिन यह बताइये कि क्‍या आप जनता में शामिल नहीं हैं। या जनता के इस तरह भेड़ जैसा व्‍यवहार करने के दोषी नहीं हैं। अगर हैं तो हमें कोई नैतिक अधिकार नहीं है कि अपने सुरक्षित घरोंदों में बैठकर जनता की गलती निकालें। सिर्फ दोष मढ़ देने से काम नहीं चलेगा दोस्‍त, अगर यह सब गलत लगता है तो इसे बदलने के लिए बहुत कुछ करना होगा। थोड़ा-बहुत बदलने या कास्‍मेटिक सर्जरी की नहीं आमूलचूल बदलाव की बात कर रहा हूं। जवाब की प्रतीक्षा में...

Anonymous said...

kya badlen bhai? kah to rahen hain ki badlo badlo badlo.. kya badlen ? ek aya tha lambi si safed dadhi vala , kahta tha jab had ho jaegi to kranti ho jaegi sab brabar ho jaega,koi lathi laker aya tha vo bhi yahi kahta tha pyar karo sab barabar ho jaega,,, pta nhi kitne aye or barabar ho gaye par kuch barabar nhi hua, nafrat hai... jung hai...ladai hai,, khun hai,,, hawas hai... bhai office ki khidki se jhankna chodo or not kmao nothing else matters

विवेक said...

कपिल जी, आपके इल्जाम सर आंखों पर...वैसे मैंने शुरुआत में ही कहा - जनता, यानी कि हम...फिर भी...सही कहा आपने...कॉस्मेटिक सर्जरी नहीं जरूरत कंपलीट मेकओवर की है...उम्मीद है मैं खुद से यह बदलाव शुरू करूंगा...इस बात को महसूस करना शायद पहला कदम है...