सुना आपने
अफजल को फांसी की मांग फिर उठी। कल 13 दिसंबर था। संसद पर हमले की बरसी। तब तो मांग उठनी ही थी। जायज है। कुछ दिन बाद ऐसी ही मांग कसब के लिए भी होने लगेगी। यह मांग करने वालों के दूसरी तरफ वालों को भी अब तो पुरोहित और पांडे के नाम मिल गए हैं। दोनों तरफ वाले मांग रहे हैं कुछ न कुछ। लेकिन नफरत को फांसी देने की मांग कब उठेगी...
इस कसब को कत्ल कर दो...
छह दिसंबर पर कुछ लोग दुखी थे
कुछ लोग खुश थे
जो खुश थे
वे कुछ कर गुजरना चाहते थे
जो दुखी थे
वे मारकर मरना चाहते थे
वे जो खुश थे
26 नवंबर को दुखी दिखे
वे जो दुखी थे
26 नवंबर को खुश दिखे
मुझे पता ही नहीं
मैं किस खेमे बैठूं
मैं तो गोलगप्पे बेचता हूं
सड़क किनारे चौराहे पर
वे जो खुश थे,
कुछ कर गुजरने के लिए
यहीं से गुजरेंगे
वे जो दुखी थे,
मारकर मरने के लिए
यहीं से गुजरेंगे
मैं दोनों से डरता हूं
क्योंकि दोनों की दुश्मनी मेरे खोमचे से है
तुम ऐसा करो
इस कसब को कत्ल कर दो
चढ़ा दो फांसी अफजल को
तब शायद नफरत मिट जाए
जैसे उन्होंने मिटा दी
करकरे और काम्टे को मारकर
और
कुछ खोमचे उजाड़कर।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
6 comments:
aaj hi ura do saale ko..
yahan baat nafrat ki nahi hai, baat hai hame maarne vaalon ki.. aur shanti ki duhayi dene se kuchh nahi hone vaala hai.. agar kuchh ho sakta tha to ho chuka hota.. 60 saalon se ham shanti hi to chilla rahe hain..
इन्हे तो सरे आम फांसी दी जाई चाहिए -शुभस्य शीघ्रम ! क्या हम किसी और वारदात का इंतज़ार कर रहे हैं ?
अपराधियों को सजा
जरूर मिले,
देश के कानून के हिसाब से,
न कि बदले के जुनून से!
होता है जुनून
अंधा हमेशा,
नफरत को जलाएं
खुद सजा देनी होगी
अपने अपने घर के चरागों को
बुझाए है जिन्हों ने बहुत से चिराग
golee kaa javaab golee our barbaadee kaa javab barbaadee ham to yahi sochate hai^
golee kaa javaab golee our barbaadee kaa javab barbaadee ham to yahi sochate hai^
aam aadmi k dard ko kash sb tmhari trh mehsus kr pate
Post a Comment