मैंने लिखा था – पुलिस अफसरों का महान सुझाव, हमें खराब हथियार दो। इस बहस को काजलजी और क्षमाजी को बहुत सलीके से आगे बढ़ाया है। उन्होंने काफी तर्कपूर्ण टिप्पणियां की हैं। लेकिन मैं उनका जवाब देना चाहूंगा...
काजल जी कहते हैं..
जब पुलिस को अत्याधुनिक साजो-सामान व सुविधाओं से लैस नही किया जाएगा तो पुलिस ऐसा ही सोचेगी।
कभी आपने सोचा है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्र में पोस्ट किए गए कॉन्स्टेबल की स्थिति क्या है, उसके पास क्या हथियार हैं, क्या व कब खाना मिलता है, उसके पास रहने की क्या व्यवस्था है, उसके पास यातायात की क्या सुविधा है, उसे किस मौसम के हिसाब से किस तरह की वर्दी मिलती है, उसके परिवार की क्या स्थिति है, उसके उच्चाधिकारी व इलाके के नेता उससे कैसा व्यवहार करते हैं, उसे कितना वेतन व कब मिलता है, उसके पास क्या संचार सुविधाएं हैं, उसे बिजली-पानी की भी सुविधा है? उसे शौच की मूलभूत सुविधाएं भी हैं क्या? कभी नेता लोगों के बारे में सोचा है कि क्या वे इस लायक हैं जो सभी कुछ हथियाए बैठे हैं?
बहुत आसान है हास्यास्पद बताना।
जिस पुलिस के आत्मविश्वास का स्तर इतना नीचा हो, जिसकी बात कोई नेता सुनने को राजी तक न हो,जिस पुलिस पर केवल निकम्मा कहा जाना ही बदा हो...उससे कोई अन्य आशा की भी नहीं जा सकती।
पर ताली एक हाथ से बजाने के बजाय अच्छा होगा कि पुलिस को इस सोच तक डिगाने के जिम्मेदार नेता लोगों को भी नंगा किया।
क्षमा जी कहती हैं...
Anti Naxalite Cell से संपर्क में हूं...इसके अनेक पहलु हैं ...police force कम है...जो बारूद /विस्फोटक बनाते हैं, उनपर पुलिस दल कैसे रोक लगा सकता है? यह काम गृह मंत्रालय के तहत आता है...और मंत्रालय में IAS के अधिकारी मंत्रियों के सचिव होते हैं...पुलिस इनके तहत रहती है...police इससे आगे क्या सुझाव देगी...ये बताएं ? गर reforms हों तो police कुछ अन्य तरीके अपना सकती है...reforms हो नहीं रहे...supreme court के order के बावजूद ( 1981 में ऑर्डर निकला था )...तबसे हर सरकार ने उसकी अवमानना की है ..अब आगे उपाय बताएं!
प्रकाश सिह, जो BSF (बॉर्डर सिक्यूरिटी फोर्स) के निवृत्त डीजीपी हैं, वो PiL दाखिल कर एक लम्बी कानूनी जिरह लड़ रहे हैं...सच तो यह है कि लोकतंत्र में जनता अपने अधिकारों का इस्तेमाल नहीं करती।
मेरा कहना है...
आपकी बात बिल्कुल सही है कि पुलिस को सुविधाएं नहीं मिलतीं। लेकिन क्या इस वजह से उसकी आलोचना बंद हो जानी चाहिए? क्या हम पुलिस की गलतियों को जाहिर करना सिर्फ इसलिए बंद कर दें कि वे ‘बेचारे’ तो ‘लाचार और मजबूर’ हैं? यह कुछ वैसा ही होगा कि पुलिसवालों को रिश्वत लेने का हक है क्योंकि उनकी सैलरी कम है। हम उनकी सैलरी बढ़ाने की बात कर सकते हैं, लेकिन किसी भी हालत में उनके रिश्वत लेने को तो जायज नहीं ठहराया जा सकता!
मैं आपकी इस बात से सहमत हूं कि पूरे सिस्टम में गड़बड़ियां हैं, लेकिन पुलिस उस सिस्टम का बेहद ताकतवर हिस्सा है। उसे असीम हक मिले हुए हैं और उसे सिर्फ इसलिए नहीं बख्शा जा सकता कि पूरा सिस्टम खराब है। ठीक है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्र में तैनात पुलिसवालों को सुविधाएं बहुत कम हैं, लेकिन क्या सिर्फ इसलिए उन्हें किसी भी मासूम को पकड़कर गोली मार देने और उसे नक्सली घोषित कर देने का अधिकार दे दिया जाना चाहिए? या सिर्फ इसलिए उनके मूर्खतापूर्ण सुझाव को सही ठहराया जाए?
पुलिस का रूखा और बेहूदा व्यवहार कितने अपराधी तैयार करता है, यह किससे छिपा है। कितने ही लोगों की शिकायतें सिर्फ इसलिए दर्ज नहीं की जातीं, क्योंकि थानों का रिकॉर्ड खराब हो जाएगा! रेप की शिकार गरीब औरतें शिकायत दर्ज करानेभर को ही दर-दर भटकती रहें और हम पुलिस की लाचारी का रोना रोते रहें? पैसे लेकर किसी को भी अपराधी बना देने का ‘गुणी शौर्य’, मासूमों को कत्ल करके उन्हें अपराधी घोषित कर देने की ‘बहादुरी’, किसी बड़े आदमी को गिरफ्तार करने से पहले फोन करके नेताओं से पूछ लेना कि कहीं उनका आदमी न हो...क्या जस्टिफिकेशन हो सकती है इसकी?
पुलिस के सिर पर निकम्मा कहा जाना बदा नहीं है, उसने खुद को निकम्मा साबित किया है। आप कहेंगे कि उन्हें तो नेता और आईएएस अफसर कुछ करने नहीं देते। नेता जिस तरह पुलिस का इस्तेमाल करते हैं, पुलिसवाले भी उनका कम इस्तेमाल नहीं करते। ‘बेहतर’ पोस्टिंग के लालच में जब यही लोग उनके आगे-पीछे नाक रगड़ते घूमेंगे तो वे क्यों नहीं इनका फायदा उठाएंगे! मैं फिर कहता हूं कि इसका मतलब नेताओं या अफसरों को जायज ठहराना नहीं है...कतई नहीं है...लेकिन सिर्फ इस आधार पर आप पुलिसवालों को माफी तो नहीं दे सकते।
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6 comments:
जी पुलिस वाले तो जिम्मेदार हैं हीं -उनके आका क्या कम जिम्मेदार हैं -ध्यान दीजिये भ्रष्टाचार का सबसे घिनौना रूप हमेशा ऊपर से चलता है ! ज्यादतर मंत्री भ्रष्ट हैं आई ये एस रीढ़ बिहीन हो गया है ,कुछ आई ये अस ने नेताओं ,माफिअओं के साथ नेक्सस बना लिया है -स्थिति दिन बी दिन विस्फोटक होती जा रही है !
जी पुलिस वाले तो जिम्मेदार हैं हीं -उनके आका क्या कम जिम्मेदार हैं -ध्यान दीजिये भ्रष्टाचार का सबसे घिनौना रूप हमेशा ऊपर से चलता है ! ज्यादतर मंत्री भ्रष्ट हैं आई ये एस रीढ़ बिहीन हो गया है ,कुछ आई ये अस ने नेताओं ,माफिअओं के साथ नेक्सस बना लिया है -स्थिति दिन बी दिन विस्फोटक होती जा रही है !
भाई, मैं भी आपकी बात से असहमत कहाँ हूँ, पुलिस दूध की धुली नहीं है पर सज़ायाफ़्ता मुजरिम को जेल में भी पर्याप्त खाना दिया जाता है. नक्सलवाद जैसी समस्या से जूझ रहे जवान को समुचित हथियारों इत्यादि की आवश्यकता है, बात बस इतनी सी है. मेरा कथ्य केवल 'पुलिस बनाम नक्सल' सन्दर्भ में था.
पुलिस राज्य की मशीनरी है जो शासित और शोसितों के दमन के लिए ही बनी है।
अपनी वर्तमान की क्षमताओं और कार्यगुजारियों से वह अपना दबदबा और दमनचक्र चलाने में सफल है और खुद आतंक का पर्याय है।
अब इसका क्या करें कि जब मजबूरों की हथियारबंद ख़िलाफत संस्थागत रूप ले लेती है और पुलिस पर भारी पड़ने लगती है।
जब हमारे पिछवाड़े पर ड़ंड़ा पडता है तो उफ़ हमें यह अनियंत्रित सांड की तरह लगती है।
जब किसी और का पिछवाड़ा तुड़वाना हो तो उफ़ कितनी बेचारी है, सही हथियार भी नहीं है।
आपकी बात से सहमत।
आपका नज़रिया प्रभावित करता है...
sirf police nikammi thode hi hai. yeh poora ka poora system nikamma hai. aise mein dosh sirf police walon ko hi kyon?
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