एक कविता
पंखों वाली
उड़ मुंडेर आ जाती है
खिलती खुलती
हिलती डुलती
दर्द दर्द सा गाती है
गीले सूखे
भूखे रूखे
माने रूठे
सच्चे झूठे
जीवन से जो
शब्द हैं टूटे
उनको चुनकर लाती है
एक कविता
पंखों वाली
उड़ मुंडेर आ जाती है
आंख से झरती
हाथ पे गिरती
गुनती बुनती
सबकी सुनती
मन मन बहती
सबकी कहती
अपना दर्द छिपाती है
एक कविता
पंखों वाली
उड़ मुंडेर आ जाती है।।
(कभी कभी मां जैसी लगती है...पंखों वाली कविता)
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11 comments:
बहुत सुन्दर!!!
कभी-कभी माँ जैसी लगती है,
बाट जोहती,
झूठा डांटती,
सर पर हाथ घुमाती,
मीठी लोरी सुनाती है,
एक कविता पंखों वाली,
उड मुंडेर आ जाती है।
bahut bahut khubsurat bhav ,sahi maa si lagi hai pankhonwali kavita.badhai
यह नए तेवर की कविता !
खिलती, खुलती
हिलती, डुलती
दर्द-दर्द सा गाती है.
....वाह.
शेर अर्ज किया है-
इसी खंडहर में कहीं कुछ दिये हैं टूटे हुए
इन्हीं से काम चलाओ बड़ी उदास है रात.
सुंदरतम .. वाकई
कभी-कभी माँ जैसी लगती है,
बहुत सुन्दर ..बढ़िया लिखा आपने
बहुत बढ़िया कविता लिखी है आपने । पढकर बहुत अच्छा लगा । कविता की हर पंक्ति पढ़ने लायक है शुक्रिया
क्या खूब लिखा है भाई ...वाह
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
ek kavita
pankhon vali
ud munder aa jati hai....
waah ...!1 bhot sunder ...!!
होली मुबारक....
बाट जोहती,
झूठा डांटती,
सर पर हाथ घुमाती,
मीठी लोरी सुनाती है,
एक कविता पंखों वाली,
उड मुंडेर आ जाती है।
बहुत सुन्दर ....!!
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