Thursday, 5 March 2009

एक कविता पंखों वाली

एक कविता
पंखों वाली
उड़ मुंडेर आ जाती है
खिलती खुलती
हिलती डुलती
दर्द दर्द सा गाती है
गीले सूखे
भूखे रूखे
माने रूठे
सच्चे झूठे
जीवन से जो
शब्द हैं टूटे
उनको चुनकर लाती है
एक कविता
पंखों वाली
उड़ मुंडेर आ जाती है
आंख से झरती
हाथ पे गिरती
गुनती बुनती
सबकी सुनती
मन मन बहती
सबकी कहती
अपना दर्द छिपाती है
एक कविता
पंखों वाली
उड़ मुंडेर आ जाती है।।

(कभी कभी मां जैसी लगती है...पंखों वाली कविता)

11 comments:

Archana Chaoji said...

बहुत सुन्दर!!!
कभी-कभी माँ जैसी लगती है,
बाट जोहती,
झूठा डांटती,
सर पर हाथ घुमाती,
मीठी लोरी सुनाती है,
एक कविता पंखों वाली,
उड मुंडेर आ जाती है।

Anonymous said...

bahut bahut khubsurat bhav ,sahi maa si lagi hai pankhonwali kavita.badhai

Arvind Mishra said...

यह नए तेवर की कविता !

मुंहफट said...

खिलती, खुलती
हिलती, डुलती
दर्द-दर्द सा गाती है.

....वाह.

शेर अर्ज किया है-

इसी खंडहर में कहीं कुछ दिये हैं टूटे हुए
इन्हीं से काम चलाओ बड़ी उदास है रात.

कुश said...

सुंदरतम .. वाकई

रंजू भाटिया said...

कभी-कभी माँ जैसी लगती है,

बहुत सुन्दर ..बढ़िया लिखा आपने

kumar Dheeraj said...

बहुत बढ़िया कविता लिखी है आपने । पढकर बहुत अच्छा लगा । कविता की हर पंक्ति पढ़ने लायक है शुक्रिया

अनिल कान्त said...

क्या खूब लिखा है भाई ...वाह

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

हरकीरत ' हीर' said...

ek kavita
pankhon vali
ud munder aa jati hai....

waah ...!1 bhot sunder ...!!

योगेन्द्र मौदगिल said...

होली मुबारक....

हरकीरत ' हीर' said...

बाट जोहती,
झूठा डांटती,
सर पर हाथ घुमाती,
मीठी लोरी सुनाती है,
एक कविता पंखों वाली,
उड मुंडेर आ जाती है।

बहुत सुन्दर ....!!