सुना आपने
वैलंटाइंस डे सजधज कर तैयार है। जंग भी अपने चरम पर है। आजादी के दीवानों की और कल्चर के ठेकेदारों की। मुझे यह बहस कभी समझ नहीं आई। जब भी मैंने इस बहस के बारे में सोचा, मुझे छत्तीसगढ़ के उस छोटे से गांव में मिली 'वह' और उसकी बेटी याद आ गई। उसके याद आते ही लगा, कितनी जरूरी है वैलंटाइंस डे मनाने की आजादी और आखिर किसके लिए है यह संस्कृति? उसकी कहानी और उसके सवाल कहां हैं ? जब तक उसके सवालों के जवाब नहीं दिए जाते, तब तक क्या इस तरह की बहस फिज़ूल नहीं है?
चड्डियों की बहस से अनजान
कॉन्डम की पहुंच से दूर
वह
आज किसी और फिक्र में है।
सर्दी तो जी ली गई
बदन बिछाकर
हाथ ओढ़कर,
खुद-खुद कर
थोड़ी-बहुत हरियाली उगलती
मरियल सी जमीन के सहारे,
पर गर्मी में
गांव की सूखी, तरसती जमीन से
कैसे मांगेगी आसरा?
इस बार फिर जाना होगा
मांसल पेड़ों के जंगल में
पत्थर चुगने के लिए,
जहां कोलतार के नीचे सुबकती जमीन का
अपना ही ठिकाना नहीं।
उससे पहले खरीदनी होगी
दो मीटर रंगीन इज़्ज़त,
क्योंकि उस जंगल में
इस बार बेटी भी होगी
रोटी देने वाले पेड़ों की निगाहों के सामने।
आओ, उसे बताएं
हम तुम्हारे लिए इंतजाम कर रहे हैं
संस्कृति में लिपटी इज़्ज़त का
और वैलंटाइंस डे मनाने की
आज़ादी का।
रोटी तो खैर,
तुम्हें उन घूरते पेड़ों से ही लेनी होगी।।
वैलंटाइंस डे सजधज कर तैयार है। जंग भी अपने चरम पर है। आजादी के दीवानों की और कल्चर के ठेकेदारों की। मुझे यह बहस कभी समझ नहीं आई। जब भी मैंने इस बहस के बारे में सोचा, मुझे छत्तीसगढ़ के उस छोटे से गांव में मिली 'वह' और उसकी बेटी याद आ गई। उसके याद आते ही लगा, कितनी जरूरी है वैलंटाइंस डे मनाने की आजादी और आखिर किसके लिए है यह संस्कृति? उसकी कहानी और उसके सवाल कहां हैं ? जब तक उसके सवालों के जवाब नहीं दिए जाते, तब तक क्या इस तरह की बहस फिज़ूल नहीं है?
चड्डियों की बहस से अनजान
कॉन्डम की पहुंच से दूर
वह
आज किसी और फिक्र में है।
सर्दी तो जी ली गई
बदन बिछाकर
हाथ ओढ़कर,
खुद-खुद कर
थोड़ी-बहुत हरियाली उगलती
मरियल सी जमीन के सहारे,
पर गर्मी में
गांव की सूखी, तरसती जमीन से
कैसे मांगेगी आसरा?
इस बार फिर जाना होगा
मांसल पेड़ों के जंगल में
पत्थर चुगने के लिए,
जहां कोलतार के नीचे सुबकती जमीन का
अपना ही ठिकाना नहीं।
उससे पहले खरीदनी होगी
दो मीटर रंगीन इज़्ज़त,
क्योंकि उस जंगल में
इस बार बेटी भी होगी
रोटी देने वाले पेड़ों की निगाहों के सामने।
आओ, उसे बताएं
हम तुम्हारे लिए इंतजाम कर रहे हैं
संस्कृति में लिपटी इज़्ज़त का
और वैलंटाइंस डे मनाने की
आज़ादी का।
रोटी तो खैर,
तुम्हें उन घूरते पेड़ों से ही लेनी होगी।।