(सुना आपने...आज बालिका दिवस है...क्यों है?)
दिल्ली की चलती बस में खड़ी लड़कियां
बहुत इंटेलिजेंट होती हैं
वे अच्छी तरह समझती हैं
चेहरों की जबान,
आंखों के इशारों को ट्रांसलेट करना
उनके बाएं हाथ का खेल है,
माल, पटाखा और बम जैसे शब्दों के अर्थ
उन्हें अच्छी तरह मालूम हैं,
वे उन शब्दों के अर्थ भी जानती हैं
जो वे कभी नहीं बोलतीं।
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते जैसी बातों को
वे बकवास कहती हैं,
बस के अचानक ब्रेक लगने का दर्द
वे सीटों पर बैठे उन लोगों से भी बेहतर जानती हैं
जिनके सिर सामने की रॉड से टकराते हैं।
दिल्ली की चलती बस में खड़ी लड़कियां
मूर्ख नहीं होतीं
चुप होती हैं।
वे जानती हैं
बोलना कभी-कभी काफी महंगा पड़ जाता है,
वे जानती हैं कि इधर-उधर फिसलते हाथों में
तेजाब भी हो सकता है।
वे जानती हैं
3 रुपये की टिकट की असली कीमत,
वे जानती हैं
बस में सफर करते हर आदमी की औकात,
इसलिए
वे बस से उतरते ही खिलखिला देती हैं।
दिल्ली की चलती बस में खड़े
लड़के कैसे होते हैं?
12 comments:
क्या पता-हम तो दिल्ली में बस में चले ही नहीं.
बढ़िया आलेख बधाई
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामना
भाई विवेकजी!
निस्सन्देह बहुत ही सुन्दर।
यह तो किसी भी मायने में 'थ्री डी कविता' के सिवाय और कुछ भी नहीं है। कविता पढते हुए मैं कविता में मौजूद लडकियों को देखता रहा।
आपकी कलम को सलाम।
सटीक और सुंदर लेख ....
अनिल कान्त
मेरा अपना जहान
कमाल क्यों नहीं करोगे , आखिर हमनाम किसके हो :)
बढिया कविता ! बधाई !
इतनी अच्छी कविता के लिए क्या कहूं। सच बहुत सारा एक साथ कह रही है। "दिल्ली की चलती बस में खड़ी लड़कियां" सब कुछ जानती हैं। दिल्ली की चलती बस में खड़ी लड़कियों का चित्र ही अपने आपमें पूरी बात कह देता है। बधाई मित्र।
बिल्कुल सही लिखा है....चुप रहने में ही भलाई है.....ऐसी स्थिति में बालिका दिवस मनाने का क्या फायदा.....सभी बालिकाओं को उनके बुहतर भविष्य के लिए बहुतबहुत शुभकामनाएं।
बढ़िया रचना
a very good poem on a very good theme. Congratulation.
शानदार कविता।
sirf dilli ki?? yah to kisi bhi bade shahar mein aam baat hai.. Bahut achchhi rachna..
बहुत व्यावहारिक समझ के साथ कविता लिखी है आपने..अच्छा लगा।
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