Saturday, 10 January 2009

कोई मेरे मोहल्ले को बचा लो, प्लीज...

सुना आपने

सत्यम ढह गई...मुझे उसकी फिक्र तो है...लेकिन...

इस बार घर गया...तो डर गया...मेरा मोहल्ला बर्बादी के कगार पर है...मेरे छोटे से शहर का बड़ा सा मोहल्ला...सबसे अमीर मोहल्ला...तीन-साढ़े तीन सौ घर...कहते हैं इस मोहल्ले के घर शहर में सबसे अच्छे हैं...अब तो वहां कुछ बड़े-बड़े बिल्डर अपार्टमेंट्स बना रहे हैं, लेकिन कभी यह मोहल्ला सबसे अच्छा हुआ करता था...शायद इसीलिए इसका नाम मॉडल टाउन रखा गया होगा...मॉडल टाउन मुझे पसंद है...मेरा घर है वहां...मेरा बचपन है...बचपन के दोस्त हैं...गिल्ली-डंडे हैं...छोटे-बड़े झगड़े हैं...वे घर हैं, जिनकी दीवारों पर चढ़कर मैं अमरूद चुराया करता था...उन घरों में रहने वाले लोग हैं...हैं नहीं थे...एक घर के सामने से गुजरा...घर में अमरूद का पेड़ तो है...लोग नहीं हैं...घर के बाहर ताला लगा है...ताले पर एक सील है...सुना है एक प्राइवेट बैंक ने ताला लगा दिया है...लोन नहीं चुकाया गया...लोन??? ये घर तो होम लोन पर नहीं बने हैं...ये तो पुराने हैं...होम लोन नामक बीमारी से भी पुराने...फिर?...फिर भी घर पर कर्ज है...

सुना है सालभर पहले यहां लोन नाम की बीमारी आई थी...साथ में बहुत सारा पैसा लाई थी...घर के कागज दो, पैसा लो...लोगों ने घर दे दिए...पैसे ले लिए...बीमारी भी ले ली...बीमारी फैलती गई...घर घटते गए...सुना है 90 फीसदी घरों के कागज बैंकों में पहुंच गए...धीरे-धीरे पैसा घटने लगा...पैसे से कार आई...बीमारी और बढ़ी...बाइक्स आई...बीमारी और बढ़ी...ब्रैंडेड कपड़े आए...मुझे अक्सर हैरत होती थी कि ये बड़े-बड़े ब्रैंड्स मेरे छोटे से शहर में शोरूम क्यों खोल रहे हैं...सोचता था मनमोहन सिंह जी का असर है...चिदंबरम की तरक्की छोटी-छोटी जगहों तक पहुंच रही है...यहां तो सत्यम जैसा महल ही रेत से बना था...

सुना है लोन की दर हर महीने बढ़ती है...इनकम तो नहीं बढ़ती...कैसे चुकाएंगे लोन...मेरे मोहल्ले में महल तो नहीं, घर हैं बस...उनकी जड़ों में भी रेत भर दिया है, इस सत्यम रूपी तरक्की ने...अब शोरूम तो हैं, घर नहीं हैं...बच्चों के पास बाइक्स तो हैं...घर नहीं हैं...मोहल्ले में कारें तो बढ़ गई हैं...घर कम हो गए हैं...सुना है चार घरों में ताले लग चुके हैं...किस घर में कब ताला लग जाए कोई नहीं जानता...कोई मेरे मोहल्ले को बचा लो...कोई राहत पैकिज दे दो...प्लीज...

10 comments:

महेंद्र मिश्र.... said...

काय भैय्या ऐसी बात है
आवाज दो हम आ रहे है
हम सभी ब्लॉगर भाई लोग राहत पॅकेज लेकर आ रहे है , ....

Safat Alam Taimi said...

बहुत ही अच्छे और मधूर लेख प्रस्तुत करते हैं आप, दिल की गहराई से बहुत बहुत धन्यवाद। खूब लिखें और लिखते रहें, हमारी शुभकामनायें आपके साथ हैं, और हम ईश्वर से आपकी सफलता के लिए प्रार्थना करते है।

Udan Tashtari said...

मोहल्ले मोहल्ले की हकीकत बयान कर रहे हो-यही हुआ है. ये लोन और नकली विकास एक नासूर सा बन गया है..

Anonymous said...

उपभोगतावाद अब भी जोरों पर है. आपने बिल्कुल ठीक लिखा है. शहरों से निकल कर अब ब्रांडेड वस्तुओं की दूकानें छोटे कस्बों में फ़ैल रही हैं. युवा पीढी इनका शिकार हो रही है. आभार अच्छे लेख के लिए.

योगेन्द्र मौदगिल said...

सामयिक समस्या... हमें मिल विचार कर हल निकालना ही होगा.. येन-केन-प्रकारेण...

Dev said...

आपको लोहडी और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ....

Vinay said...

बहुत ख़ूब

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आप भारतीय हैं तो अपने ब्लॉग पर तिरंगा लगाना अवश्य पसंद करेगे, जाने कैसे?
तकनीक दृष्टा/Tech Prevue

Manuj Mehta said...

bahut khoob vivek, aapne bahut hi yatharthvadi rachna. satik kataksh. badhai

Anonymous said...

सत्यम महाघोटाले को उजागर करता एक सुन्दर लेख । आपने इस लेख में सारी चीजों को समेट लिया है । कहीं खो गए हो आजकल मुलाकात नही होती है । धन्यवाद

Sujata Dua said...

पता नहीं किस किस के ब्लॉग से घूमती आप के ब्लॉग तक आयी ....और यह लेख पढ़ा
कुछ अजीब से टीस है आपकी लेखनी में ...चीजों पर व्यंग्य करना और उस पर तड़प कर वार करना दो अलग अलग हुनर हैं ...आप में दोनों हैं