इस कोशिश का फायदा यह हुआ कि मुझे दूर से ही नज़र आ गया कि सड़क पर कुछ गिरा हुआ है। थोड़ा आगे बढ़ा तो लगा कि किसी का टेडी बेयर गिर गया है। देखने में छोटे-से पिल्ले जैसा नजर आ रहा वो टेडी बेयर इतना सजीव लग रहा था कि मुझे उसके बनाने वाले पर गुमान होने लगा। लेकिन इस गुमान को टूटते कुछ सेकंड्स भी नहीं लगे और उससे पहले तो मेरी रफ्तार टूट चुकी थी। चीं...............के साथ ब्रेक्स ने वील रिम के साथ और पहियों ने सड़क के साथ थोड़ा संघर्ष करने के बाद गाड़ी को ठीक वक्त पर रोक देने में मेरी भरपूर मदद की। सड़क के ठीक बीचोंबीच दिखाई दे रहा वह टेडी बेयर असली पिल्ला था। छोटा सा...मुश्किल से एक-डेढ़ महीने का। स्याह काले रंग के उसके बालों के बीच मुंह और पंजों के पास सफेद चकत्ते उसकी मासूमियत में शरारत की मिलावट कर रहे थे।
मैं गाड़ी से उतरकर आगे बढ़ा तो अलर्ट की मुद्रा में बैठा पिल्ला कुछ देर तक मुझे देखकर पहचानने की कोशिश करता रहा। मेरे तीन ही कदमों में उसे जाने क्या अपनापन नज़र आया कि वह दौड़कर खुद ही मेरे पास पहुंच गया और पैरों में लिपट गया। मैंने प्यार से उसे उठाया और जानवरों के लिए मेरा प्यार उमड़ पड़ा। मैंने उसे सहलाया-दुलराया और उस सुनसान इलाके में पहाड़ी के ऊपर बनी एक बिल्डिंग की तरफ देखकर सोचने लगा कि यह वहीं कहीं से आ गया होगा। मेरा मन हुआ कि उसे अपने साथ ले चलूं... लेकिन तभी दफ्तर की व्यस्तता और दिल्ली की भागदौड़ में बीत जाते अपने वक्त की गुंजाइश उसके प्यार के आगे बड़ी दिखाई देने लगी। मैं उसके लिए आसपास की कोई सेफ जगह तलाशने लगा। पहाड़ी के ऊपर बिल्डिंग की तरफ बढ़कर मैंने उसे रेलिंग के अंदर छोड़ दिया। मैं मुड़ा ही था कि वह फिर मेरे कदमों में लिपट गया और इससे पहले कि मैं झुककर उसे उठा पाता, अपनी पूरी ताकत से सड़क के दूसरी तरफ भागने लगा। हालांकि उस वक्त सड़क सुनसान थी, लेकिन कोलतार की उस चादर पर पर नन्ही-सी जान को भागते देख भविष्य की किसी अनहोनी ने मुझे थोड़ा अनकंफर्टेबल कर दिया। तब तक वह सड़क के दूसरी तरफ खाई के किनारे पहुंच चुका था। वहां से उसने मेरी ओर देखकर रोना शुरू कर दिया।
हैरत के साथ मैं उसके पास पहुंचा, तो मुझे महसूस हुआ कि दो पिल्ले रो रहे हैं। मैं हैरत से इधर-उधर दूसरे पिल्ले को तलाशने लगा। करीब दस कदम तक बढ़ने के बाद मुझे नीचे गहराई से आवाज आती सुनाई दी। ढूंढते-ढूंढते जब मैं सड़क किनारे झाड़ियों के बीच पहुंचा, तो छह-सात फीट गहरे गड्ढे से आती पिल्ले के रोने की आवाज का सोर्स मुझे मिल चुका था। मैं तुरंत उस गड्ढे में उतरा और ऊपर चढ़ने की कोशिश करते उस छोटे-से पिल्ले को अपनी बाहों में ले लिया। पिल्ला मेरे सीने से इस तरह चिपक गया, जैसे बंदर अपनी मां के पेट से चिपका हो। उसकी तेज धड़कनों को मैं महसूस कर पा रहा था। उसने रोना बंद कर दिया था। मैं बाहर निकला, तो देखा कि दूसरा पिल्ला भी गड्ढे के पास आ बैठा था। अब वह रिलैक्स्ड नजर आ रहा था। मैंने दोनों को हाथों में उठाकर सहलाया।
उस पिल्ले के सड़क पर उस तरह बैठने और मेरे पास आने की वजह मैं जान चुका था। तब तक उस बिल्डिंग की तरफ से कुछ बच्चे आते नज़र आए। मैं उन तक पहुंचा और उन्हें पिल्ले देते हुए कहा कि इन्हें गांव में ले जाना, सड़क पर खतरा है। पिल्लों को बच्चों के सुरक्षित हाथों में सौंप मैं कार की तरफ बढ़ने लगा तो उनमें से एक पिल्ला बच्चे के हाथ से छूटकर मेरे पास दौड़ता हुआ आया और कदमों में लिपट गया। उसके पंजों पर भूरे चकत्तों से मैं पहचानता था कि यही गड्ढे से निकला था। मैंने एक बार फिर उसे उठाया, प्यार किया और बच्चे को देकर गाड़ी की ओर बढ़ गया। एक सच्ची कहानी और खूबसूरत याद मुझे अपनी कार के साथ दौड़ती नजर आई।
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