Friday, 18 September 2009

पुलिस अफसरों का महान सुझावः हमें खराब हथियार दो

दिल्ली में देश के सबसे बड़े पुलिस अफसरों का सम्मेलन हुआ। वे लोग देश की सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए फिक्रमंद हैं। इसी की बेहतरी के लिए बातचीत हो रही है। इसी बातचीत में एक सुझाव आया है। देश के सबसे बड़े (और बहादुर?) पुलिस अफसरों की तरफ से आया यह महान सुझाव आप भी पढ़िए।

मैं www.navbharattimes.com की एक खबर को यहां कोट कर रहा हूं –

“चर्चा के दौरान नक्सलियों द्वारा भारतीय कंपनियों से लूटे गए विस्फोटकों का मुद्दा भी उठा। पुलिस अधिकारी चाहते हैं विस्फोटक बनाने वाली कंपनियां जो जिलेटिन छड़ें बना रही हैं उनको इस तरह बनाए कि वह एक निश्चित अवधि के बाद बेकार हो जाएं। निर्धारित अवधि के बाद इनका उपयोग ही न किया जा सके। नक्सली अभी जो विस्फोटक लूट कर रख लेते हैं उनका लंबे समय तक इस्तेमाल करते रहते हैं। इन कंपनियों द्वारा बनाए जाने वाले डेटोनेटर पर भी सवाल उठे।

अफसरों का कहना था कि डेटोनेटर ऐसे बनाए जाएं जिन्हें फटने में कुछ ज्यादा समय लगे। ऐसी स्थिति में सुरक्षा बलों के जवान और वाहनों का बड़ा बचाव होगा। क्योंकि अगर डेटोनेटर देर से फटेगा तो वाहन को बारूदी सुरंग या बम के ऊपर से निकलने का समय मिल जाएगा। उल्लेखनीय है कि नक्सली सुरक्षा बलों के खिलाफ सबसे ज्यादा बारूदी सुरंगों का ही इस्तेमाल करते है। सबसे ज्यादा नुकसान इन्हीं से होता है।”


पूरी खबर यहां पढ़ें

अगर यह खबर सही है (दोहराता हूं, अगर खबर सही है, क्योंकि यकीन नहीं हो रहा कि ऐसा सुझाव आया होगा पुलिस अफसरों की तरफ से) और मैं इस बात को सही समझ रहा हूं तो हमारे बहादुर पुलिस अफसर चाहते हैं कि हथियार खराब बनाए जाएं ताकि जब नक्सली उन्हें लूट कर ले जाएं, तो वे उनके काम न आ सकें।

इससे तो बड़े दिलचस्प निष्कर्ष निकलते हैं। पुलिस अफसर मान चुके हैं कि हथियार लूटे ही जाएंगे। वे लूट तो नहीं रोक सकते, इसलिए हथियार ही खराब कर दो। नक्सली सिर्फ लूटे गए हथियारों पर ही निर्भर हैं। उनके पास और कोई जरिया ही नहीं है।

युद्ध का एक तरीका होता है दुश्मनों की सप्लाई काट देना। लेकिन सप्लाई काटने का यह तरीका तो नायाब है।

निश्चिंत रहिए, आपकी सुरक्षा बहुत काबिल हाथों में है।

7 comments:

M VERMA said...

वाह क्या उपाय है.
लूटे हुए हथियार
जब हमपर करे वार
तो यह वार इस तरह ही तो
हो जायेगा बेकार

ओम आर्य said...

सुझाव नक्शली हमला के मद्दे नजर सही लगता है ........एक बहुत सुन्दर पोस्ट..... अतिसुन्दर!

सुशीला पुरी said...

यह खबर बहुत हास्यास्पद है.........पर आज की जो सुरक्षा वयवस्था है उसके लिहाज से नई भी नही, क्यूँ की दोष तो हमारी मूलभूत बनावट में ही है .

Kajal Kumar said...

जब पुलिस को अत्याधुनिक साजो-सामान व सुविधाओं से लैस नही किया जाएगा तो पुलिस एसा ही सोचेगी.

कभी आपने सोचा है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्र में पोस्ट किए गए कांस्टेबल की स्थिति क्या है, उसके पास क्या हथियार हैं, क्या व कब खाना मिलता है, उसके पास रहने की क्या व्यवस्था है, उसके पास यातायात की क्या सुविधा है, उसे किस मौसम के हिसाब से किस तरह की वर्दी मिलती है, उसके परिवार की क्या स्थिति है, उसके उच्चाधिकारी व इलाके के नेता उससे कैसा व्यवहार करते हैं, उसे कितना वेतन व कब मिलता है, उसके पास क्या संचार सुविधाएं हैं, उसे बिजली-पानी की भी सुविधा है? उसे शौच की मूलभूत सुविधाएं भी हैं क्या? कभी नेता लोगों के बारे में सोचा है कि क्या वे इस लायक हैं जो सभी कुछ हथियाए बैठे हैं?

बहुत आसान है हास्यास्पद बताना.

जिस पुलिस के आत्मविश्वास का स्तर इतना नीचा हो, जिसकी बात कोई नेता सुनने को राजी तक न हो,जिस पुलिस पर केवल निकम्मा कहा जाना ही बदा हो...उससे कोई अन्य आशा की भी नहीं जा सकती.

पर ताली एक हाथ से बजाने के बजाय अच्छा होगा कि पुलिस को इस सोच तक डिगाने के जिम्मेदार नेता लोगों को भी नंगा किया जाए...

kshama said...

Anti Naxalite Cell से संपर्क में हूँ ...इसके अनेक पहलु हैं ...police force कम है ...जो बारूद /विस्फोटक बनाते हैं , उनपे पुलिस दल कैसे रोक लगा सकता है ? ये काम गृह मंत्रालय के तहत आता है ...और ग्रुमंत्रालय में IAS के अधिकारी मंत्रियों के सचिव होते हैं...पुलिस इनके तहत रहती है.. ....police इससे आगे क्या सुझाव देगी ...ये बताएं ? गर reforms हों तो police कुछ अन्य तरीके अपना सकती है ...reforms हो नही रहे ...supreme court के order के बावजूद ( 1981 में ऑर्डर निकला था )...तबसे हर सरकारने उसकी अवमानना की है ..अब आगे उपाय बताएँ !
प्रकाश सिंग ,जो BSF( बॉर्डर सिक्यूरिटी फाॅर्स) के निवृत्त डीजीपी हैं, वो PiL दाखिल कर एक लम्बी कानूनी जिरह लड़ रहे हैं...सच तो यह है,कि, लोक तंत्र में जनता अपने अधिकारों का इस्तेमाल नही करती..

kshama said...

Kajal kumar kee tippanee ekdam shat pratishat sach hai...saal bharme sainkdon police wale maare jata hain...naxalwadee hamlon me..aur jin paristhitoyon me police kaam kartee wo sthitiyaa saamne aayen, to adhik achha hoga...sikkeka doosara pahlu padhen:
http://lalitlekh.blogspot.com

is Shama ji ke blog pe..jo swayam ek lambee jaddo jahad kar rahee hain..

gaurav said...

is par thoda sa or achi tarah khela ja sakta tha