Friday, 11 September 2009

डर जाओ, अब वह मरने के लिए तैयार है

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सुना तुमने,
इस बार उसने
मुंह चिढ़ाती भूख को
धमकाकर भगा दिया है।
हालात के पंछी
उसके घर के सामने वाले बरगद पर नहीं हैं
आज सुबह से।
कल रात से मजबूरियां भी
रोती सुनाई नहीं दीं।
बताते हैं,
कई रोज हुए
सूख चुका है
छलकती भावनाओं का कुआं।
और अभी-अभी बहाकर आ रहा है
आंसुओं की लाश,
बिना संस्कार किए।

डर जाओ,
अब वह मरने के लिए तैयार है।।

4 comments:

ओम आर्य said...

bahut hi komal our marmsparshi rachana apane likhi hai .........aankhe nam ho gayi...

Himanshu Pandey said...

आश्चर्यजनक ! मानवोचित क्रियायें कैसे फब रही हैं मानव की परिस्थितियों-हालातों पर ।

Pooja Prasad said...

हां विवेक। अब ऐसे आदमी को न कोई रुला सकता है, न दर्द के नाम पर सता सकता है, जिसने अब अपनी विवशताओं तक का अंतिम संस्कार कर दिया खुद अपने हाथों, क्या हमारे देश का प्रशासन और नेतागण उसका कुछ बिगाड़ सकते हैं!नहीं। डरो कि अब वो तुमारा वोट बैंक नहीं रहा...

M VERMA said...

मार्मिक रचना
डर जाओ,
अब वह मरने के लिए तैयार है।।
वाह क्या भावनाओ का प्रवाह है