बीजेपी जसवंत सिंह को निकाले या गले में डाले, मेरी बला से। उनकी पार्टी में लोकशाही है या भौंकशाही, यह भी वे आपस में ही समझें। पार्टी आरएसएस की तान पर नाचती है या आरएसएस पार्टी को जांचती है, मुझे कोई मतलब नहीं। मैं किताब पर बैन सहन नहीं कर सकता।
बीजेपी के भीतर किताब पर जो भी हल्ला मचे, आप आम आदमी को किताब पढ़ने से कैसे रोक सकते हैं? पार्टी को किताब पसंद नहीं आई या उसका लिखनेवाला, यह उनकी अपनी समस्या है। वे तय करने वाले कौन होते हैं कि मैं क्या पढ़ूंगा और क्या नहीं?
जसवंत सिंह ने जो लिखा है, उस पर बीजेपी को आपत्ति है, एक राज्य की जनता को नहीं। और अगर आपत्ति है भी, तो जनता खुद तय करेगी कि किताब पढ़नी है या कूड़े में फेंकनी है। कोई मुख्यमंत्री सिर्फ इसलिए ऐसा नहीं कर सकता, क्योंकि किताब में जो लिखा गया है, वह उसकी पार्टी की विचारधारा के खिलाफ है।
जसवंत सिंह को निकालना तानाशाही हो या न हो, किताब पर बैन लगाना तानाशाही है। राज्य की जनता आपकी पार्टी की मेंबर नहीं है, जिसके लिए आप विप जारी करेंगे कि क्या लिखे और क्या पढ़े।
नरेंद्र मोदी के इस कदम का सख्त विरोध होना चाहिए। मैं इसका विरोध करता हूं।
Friday, 21 August 2009
Tuesday, 18 August 2009
सिस्टमः भौंकना कुत्तों का फर्ज रहे
सूनी अंधेरी गली में
रात को भौंकते कुत्ते
क्या आपकी नींद खराब करते हैं?
नींद उचट जाने के बावजूद
आपको लगता होगा
सूनी अंधेरी गली में
रात को भौंकते कुत्ते
प्रतीक हैं उस अनजान साये का
जो उन्हें अंधेरे में नजर आ रहा है।
तब नींद की जगह
आंखों में
उमड़ पड़ता होगा धन्यवाद
कोई आपको बचा रहा है।
जरूरी नहीं कि
अनजाना साया,
आया ही हो
हो सकता है
कुत्तों को भौंकने में
मजा आने लगा हो।
आप ये क्यों नहीं सोचते
कि
सूनी अंधेरी गली में
रात को भौंकते कुत्ते
प्रतीक हैं
आपके जग जाने का।
तो बैठें
उठें
देखें
साया है भी या नहीं।
क्योंकि
भौंकना उनका फर्ज़ ही रहे
शौक न हो जाए।
ज़रूरी आपकी नींद रहे
उनकी भौंक न हो जाए।
रात को भौंकते कुत्ते
क्या आपकी नींद खराब करते हैं?
नींद उचट जाने के बावजूद
आपको लगता होगा
सूनी अंधेरी गली में
रात को भौंकते कुत्ते
प्रतीक हैं उस अनजान साये का
जो उन्हें अंधेरे में नजर आ रहा है।
तब नींद की जगह
आंखों में
उमड़ पड़ता होगा धन्यवाद
कोई आपको बचा रहा है।
जरूरी नहीं कि
अनजाना साया,
आया ही हो
हो सकता है
कुत्तों को भौंकने में
मजा आने लगा हो।
आप ये क्यों नहीं सोचते
कि
सूनी अंधेरी गली में
रात को भौंकते कुत्ते
प्रतीक हैं
आपके जग जाने का।
तो बैठें
उठें
देखें
साया है भी या नहीं।
क्योंकि
भौंकना उनका फर्ज़ ही रहे
शौक न हो जाए।
ज़रूरी आपकी नींद रहे
उनकी भौंक न हो जाए।
Saturday, 8 August 2009
एक महान लेखक की बे-मौत...
कोर्ट मार्शल का नाम सुना है आपने? मशहूर नाटक कोर्ट मार्शल? क्या आप जानते हैं कि इस महान और मशहूर नाटक को लिखने वाला करीब तीन साल से लापता है? 2 जून 2006 की सुबह दीपक मॉर्निन्ग वॉक के लिए निकले। फिर नहीं लौटे। आज तक।
अभी अंबाला में उनके कुछ दोस्तों से मिलना हुआ। वे दीपक की बात करते कतराते हैं। दुखता है। दीपक की पत्नी गीता दीपक की यादों के साथ-साथ कैंसर से भी जूझ रही हैं। अब वे उन लोगों से कम ही मिलती हैं, जो दीपक की बात करने आते हैं। कुछ लोग उनके नाटक करते हैं, वे अब इजाजत नहीं लेते। स्टेज पर नाटक होते हैं...दीपक नहीं।
उनकी याद में सभाएं नहीं होतीं... उन्हें श्रद्धांजलि कोई दे तो कैसे...
दीपक हैं या नहीं, कोई नहीं जानता। इंतजार...कुछ करते हैं, कुछ नहीं। दीपक का जिक्र अब सिर्फ एक लाइन में होता है। लोग एक-दूसरे से पूछते हैं - क्या लगता है, कभी लौटेगा दीपक...जवाब नहीं मिलता...दे भी कौन सकता है। जिक्र रुक जाता है। बात आगे नहीं बढ़ती।
अजीब है ना...एक महान लेखक के लिए इससे बड़ी ट्रैजिडी और क्या होगी कि उसका जिक्र ही बंद हो जाए। फिर भी, दीपक के शब्द तो जलते हैं... जलते रहेंगे।
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