यह कविता मैंने चुराई है
उस फटे-पुराने बूढ़े से
जो मदरडेयरी के पुल पर सड़क किनारे
छतरी ताने बैठा रहता है,
एक मैले से चादरनुमा कपड़े पर
पान-मसाले के पैकिट बिछाए।
चिलचिलाती धूप और तेज़ बारिश में
उसकी छतरी के छेदों से
अक्सर झरती है...कविता।
यह कविता मैंने चुराई है
उस उधड़े हुए मोची से
जो बस स्टॉप के बराबर में बैठा
जीता रहता है
गुजरते जूतों के तलवों के नीचे।
2750 रुपये के जूते में
कील ठुकाई के बाद
5 रुपये देने पर झीकते ग्राहक
अक्सर उगलते हैं...कविता।
यह कविता मैंने चुराई है
उस छोटी सी सेल्सगर्ल से
जो बड़े से शोरूम में
रोज बेचती है हजारों का सामान।
2 मिनट लेट होने पर छोटी सी सैलरी में
बड़ी सी कटौती का डर
जब उसे मजबूर करता है
लफंगों से भरी बस के पीछे भागने के लिए
तो अक्सर उसके कमीज की सिलाई से
फट जाती है...कविता।
यकीन मानिए
अखबार की सुर्खियों से
भरमाए हुए दिलों में
अब कविताएं नहीं उगतीं।
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21 comments:
वह विवेक जी बहुत सुन्दर ..कमाल है मुझे तो अभी ईअभी पता चला ...मैं भी वहीं से गुजरता हूँ..आज ही चुराउंगा...मैं भी...
विवेक जी,
कविता बहुत ही सुन्दर है!!
बड़ा तीखा/पैना नज़रिया है और उतनी ही शार्प सोच कि कोई भी पहलू पल्ले से बाहर जा ही नही सकता।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
ek tikhi bhaaw ke sath ......insaano ko thoda sa insaan banaane ki koshish ........aapke dhardar najar ko our takat mile .......bahut khub
जी हा! कविता वही मिलती है जहा आपको मिली थी. कोई कोई ही पर चुरा पाता है. आपने बखूबी चुराई है.
इतनी चतुराई से चुराई है कि असली लगती है...
बहुत ही अच्छी क्वैलिटी के माल पर हाथ साफ़ किया है दोस्त ! अंतर्भाव बहुत अच्छे है, बधाई !!
साधू। अत्यंत चिंतनशील भाव। सुन्दर।
भावपूर्ण रचना......भई, ऎसी चोरी तो हर कोई करना चाहेगा.....
वाह विवेक जी.......... कविता के माध्यम से दर्द को उडेल दिया है ............ तीखी कलम से लिखी दिल के दर्द को लिखती लाजवाब रचना
aap aur bade aur behtar chore bane...sarthak chori.
मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत सुंदर कविता लिखा है आपने! अब तो मैं आपकी दसवी फोल्लोवेर बन गई हूँ इसलिए आती रहूंगी!
मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!
i dont hv anything to say..............
but just its "ULTIMATE"
विवेक भाई, कविता चुराना निरंतर रखें।
अखबारों की सुर्खियों में काव्यात्मक जीवन और जीवन की ऐसी कविताएं कभी आ भी नहीं सकतीं।
bechare budhe ke pass kavita thi woh bhi aap ne chura li??par kavita hai bohat touhing....
excellent thoughts!!
सही चोरी की है !
vaवह विवेक जी बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति है समाज के चेहरे को कितनी तीखी नज़र से देखते हो ये बहुत बडी बात है शुभकामनायें आभार
vaवह विवेक जी बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति है समाज के चेहरे को कितनी तीखी नज़र से देखते हो ये बहुत बडी बात है शुभकामनायें आभार
अच्छी लगी यह आपकी कविता जिसे घूम घूम कर जगह जगह से बहुत ही चतुराई से आपने चुराई और करीने से टुकड़ों को गूंथ दिया....
मेरी शुभकामनाएं विवेक जी !
- अरुण
www.shriarunji.blogspot.in पर आपका स्वागत है ।
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