अजीब सवाल है ना ! रावण, हिटलर, कुंभकर्ण, विभीषण, शकुनि, दुर्योधन, कंस, मेघनाद...मैं कभी इन नामों वाले किसी शख्स से कभी नहीं मिला। पापा की पीढ़ी में, अपनी पीढ़ी में और मेरे बाद आई पीढ़ी में भी मैंने अब तक किसी ऐसे शख्स को नहीं देखा, जिसका नाम रावण हो। सुना है कि दक्षिण भारत में किसी जगह रावण की पूजा होती है। हो सकता है, वहां किसी का नाम रावण हो !
अपने कुछ यूरोपीय मित्रों से पूछा तो हिटलर नाम पर उन्होंने ने भी वैसी ही प्रतिक्रिया दी, जैसी इन कुछ हिंदुस्तानी नामों को लेकर हमारी होती है। क्यों? सिर्फ इसलिए कि ये नाम ऐतिहासिक या पौराणिक खलनायकों के हैं? क्या यह यह हमारी सनक नहीं है कि हम अपने बच्चों के नाम तक ऐसे नहीं रखना चाहते?
अच्छा एक और सवाल और...हर्षद मेहता, मनु शर्मा, प्रभाकरन, तेलगी....क्या ये खलनायक नहीं हैं? हमारे वक्त के खलनायक तो शायद यही हैं। ऐतिहासिक खलनायकों का तो हमने बस नाम ही सुना है, हमने इन लोगों के तो अपराध और उनकी वजहों से बहाए गए आंसू, दोनों देखे हैं...क्या इन नामों को लेकर भी हमारे अंदर वही विरोध है, जो रावण या हिटलर या मेघनाद जैसे नामों को लेकर है?
जब नाम रखे जाते हैं, तो उम्मीद की जाती है कि उस नाम के गुण बच्चे के अंदर आएंगे। क्या ऐसा होता है? फीसद तो नहीं पता, लेकिन अपने आसपास जितने भी लोगों को देखता हूं, एक-आध ही है, जिसके अंदर वे गुण हैं जो उनके नाम के मुताबिक होने चाहिए। आप नजर दौड़ाइए अपने चारों ओर, देखिए कितने लोग हैं जो यथा नाम तथा गुण हैं। और फिर रावण की मां ने कब सोचा होगा कि उसका बेटा इतिहास का इतना बड़ा खलनायक निकलेगा, ठीक उसी तरह जैसे प्रभाकरन की मां ने नहीं सोचा होगा!
फिर भी, कौन अपने बच्चे का नाम रावण रखना चाहेगा !
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12 comments:
वह क्या बात है मगर हमने कल एक ब्लोग देखा था रावण के नाम से आई डी तो याद नहीं आज के रावणों से ति वो रावण कहीं अधिक महान था मगर हम सब कुछ कंहाँ देखते हैं अच्छी पोस्ट है आभार्
कौन रिस्क ले बाबा..
रावण तो पौराणिक चरित्र था। क्या किसी ने अपने बच्चे का नाम प्राण रखा है? इस बारे में तो ईनाम की घोषणा भी प्राण साहब की बेटी ने की थी
बात तो सत्य है...........
paablaa ji........praan Sharmaa ji to blog jgat ki mashhoor hasti hain.........
हा हा
दिगम्बर जी, अभिनेता प्राण सिकंद 12 फरवरी 1920 को जनमे थे व अगर आप सुराही वाले प्राण शर्मा की बात कर रहे तो वे 13 जून 1937 को जनमे थे।
1954 में प्राण साहब की पहली फिल्म बिरज बहू आई थी। जाहिर है अभिनेता प्राण काफी समय बाद 'कुख्यात' हुये थे। उनकी बेटी ने भी यह प्रतियोगिता शायद 80 के दशक में, किसी खास सन के बाद प्राण नाम रखे जाने वाले बच्चे की तलाश में रखी थी।
जहाँ तक मुझे याद है यह अवार्ड लेने के लिए किसी माँ-बाप ने दावा नहीं पेश किया था।
कौन आता भई :-)
रावण नाम की अब जरूरत नहीं है
सबने रावण कर्म को जब जीवन में
उतार लिया है
उन्हीं कर्मों से आज के सभी अखबार
चैनल, ब्लॉग्स भरपूर मिलते हैं
बस रावण नाम ही तो
दूर तक नहीं दिखते हैं
नाम चाहे रख लें
पर रावण कर्मों से तो
तौबा करें
वो शुभ दिन कब आएगा
लगता नहीं कभी आएगा
सही है ऐसे नाम तो मैंने भी कभी अपने आस पास नहीं सुने...सिवाय इसके के बचपन का मित्र रमण, जिसे हम रावण कहते थे.
Hitler surname tha, asli naam 'Adolf' tha. jo ki abhi bhi Germany me prachalit hai.
ravan khalnayak nahi tha
aaj k log agar ravan b ban jaye to bahut hai
vo to ramanand saagar ki aproch thi jo usne bhagwan ram ko uch dikhane k liye ravan ko neecha dikha diya.
bhagavan ram bhagvan ho kar b seeta ki agni pareeksha lete hai.
orr ravan insaan ho kar b seeta ko haath b nahi lagaata. o jeevan mrityu se aage tha. sirf bhagvan k hatho se marna chahta tha.
I have met with a person named Kumbhkaran Azad but he is very much ashamed at this name. He genearally tells his name as K. K. Azad. But as a matter of fact this is an exception.
koi bhi apna naam khud nahi rakhta.... uska naam uske ma baap rakhte hain , or ma baap ne agar kabhi aisa naam rakh diya to duniya vale uske bachche ka mzak udayenge
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