कल टीवी पर देखा...अब अंडरवेयर बनाने वाले भी वोट डालने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। सब कर रहे हैं। चाय वाले, फिल्म वाले, प्रॉपर्टी वाले, क्रिकेट वाले...सब...चुनाव आयोग वालों को तो खैर इस बात की तन्ख्वाह मिलती है। बाढ़ आ गई है प्रेरणाओं की और प्रेरणा देने वालों की। वोट दो वोट दो...लोकतंत्र को मजबूत करो...आपका एक वोट आपकी किस्मत बदल सकता है। देश बदलना है तो वोट दो।
लेकिन देश कैसे बदल जाएगा, यह बात मुझे समझ नहीं आई। 60 साल से ऊपर हो गए वोट देते। 14 लोकसभा देख चुके हैं। 6 तो 15 साल में ही देख ली थीं। यानी 30 साल के वोट 15 साल में ही डाल लिए। पहले कुछ कम लोग वोट डालते होंगे, क्योंकि वोट डालने के लिए प्रेरणा देने वाले नहीं थे। फिर भी वोट तो डले। सांसद तो बनते ही रहे। लेकिन लोकतंत्र आज तक मजबूत नहीं हुआ। कमजोर ही हुआ। हमने तो संसद में लोकतंत्र को बिलखते ही देखा। फिर इस बार ऐसा क्या होने वाला है कि ज्यादा लोगों के वोट देने से लोकतंत्र मजबूत हो जाएगा? कोई नया विकल्प तो खड़ा नहीं हुआ है। वही कांग्रेस है, वही बीजेपी है, वही मुलायम, लालू, पासवान, करात। सब तो वही हैं। कौन नया आ गया है, जो वोट पाकर लोकशाही को मजबूत करेगा? हमारे वोट से तो यही लोग मजबूत होंगे। इन्हीं में से कोई न कोई सरकार बना लेगा। फिर अगर आज तक इनके हाथों लोकतंत्र मजबूत नहीं हुआ, तो इस बार ज्यादा वोट डालने से कैसे मजबूत हो जाएगा?
40 की जगह 70 परसेंट वोट पड़ भी गए, तो जीतने वालों को 30 की जगह 50 परसेंट वोट मिलेंगे। वे और मजबूत होकर कुर्सी पर बैठेंगे। अपने काम और मजबूती से करेंगे। लेकिन कौन से काम? वही ना, जिन्होंने अब तक लोकतंत्र की जड़ें खोदीं... तो फर्क क्या पड़ने वाला है? फिर ये चाय वाले, फिल्म वाले, क्रिकेट वाले, अंडरवेयर...ये सब क्यों चिल्ला रहे हैं...वोट दो...वोट दो...अब तक जिन्होंने लोकशाही को कमजोर किया, उन्हें मजबूत करने से इन सबका क्या फायदा है?
जरा सोचिए...
Monday, 20 April 2009
Subscribe to:
Posts (Atom)